Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ३०२
३९. ।श्री अंम्रितसर पंजे सिज़ख पुज़जे॥३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>४०
दोहरा: आदि ब्रिज़ध गुरदासि१ गन,
चहुदिसि महि गुरु दास२।
सिमरति श्री अरजन गुरू,
सभि अुर दरशन पास ॥१॥
चौपई: लवपुरि ते गमनो कित शाहू।
सुधि पहुची कबि ही हम पाहू+।
अबि किस कारन इत नहि आए।
को कारज नहि अपर बताए३ ॥२॥
आज काल आवहि चितवंते।
बैठे हरिगोविंद दुतिवंते।
इतने महि पंचहु चलि आए।
बदन बिबरन४ दुखित ग़रदाए५ ॥३॥
दीन मनै हुइ बंदन करी।
गिरा न मुख ते जाति अुचरी।
तरि तूरनता हरिगोविंद।
बूझति किस थल गुरू बिलद? ॥४॥
किम पंचहु तुम तजि करि आए?
बरण ग़रद मुख को दरसाए?
कै आवति? गुरु वहिर सथाना।
थिरे पखारनि पद अरु पाना ॥५॥
तअू एक दुइ आवति आगे।
किम पंचहु गमने गुरु तागे?
बदन प्रफुज़लिति नहिन तुमारा।
कोण कारण नहि करति अुचारा? ॥६॥
कहित सकल पंचहु मुख देखै१।
१भाई बुज़ढा ते गुरदास आदिक।२गुराण दे दास।
+कवी जी ळ इह खबर ठीक नहीण मिली। पातशाह अजे लाहौर ही सी।
३होर की कंम है, नहीण दज़स गए।
४बेरंग।
५पीले।