Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४४
इसे भाव* ळ कवी जी अज़गे रास १ अंसू ९ छंद २६, २७ विच बी दज़सदे
हन:-
सारब भौम महा महिपालक पोशिश पूरब की तजि कै।सुंदर और नवीन धरै तन, आइ सभा थित है सजिकै।
जोति ते जोति प्रकाश रही जिम लागे मसाल ते दूजी मसाला।
घाट न बाढ बनै कबहूं जुग होहिण समान प्रकाश बिसाला।
दसोण ही सतिगुरू ग़ुलम ते अज़गान दे समेण होए हन, परजा अज़गान विच
सी, ते ग़ालमां दे ग़ुलम हेठ सी, इस ग़ुलम ळ अंधेर कहिं दा मुहावरा है ते
सतिगुरू जी ने आप इस अंधेर दा रूप दसिआ है जो तदोण वरत रिहा सी। यथा:-
कलिकाती राजे कासाई धरमु पंख करि अुडरिआ ॥
कूड़ु अमावस सचु चंद्रमा दीसै नाही कह चड़िआ ॥
हअु भालि विकुंनी होई ॥ आधेरै राहु न कोई ॥
विचि हअुमै करि दुखु रोई ॥ कहु नानक किनि बिधि गति होई ॥१॥
।वार माझ म: १
गुबार दा रूप पद अरथां विच पिछलेरे सफे ते दज़स आए हां बाझहु गुरू गुबार
है अज़गान दूर करन वाले गुरू दी अंहोणद तोण गुबार सी।
अंधेरे दी निविरती लई पहिलां अुपदेश नाल ही बाबर, लाजवरद,
देवलूत, आदिक हुकमरानां ळ दरुसत कीता जदोण औरंगग़ेब वरगे अुपदेश नाल
दरुसत हुंदे ना डिज़ठे तांभगौती नाल अुन्हां दी सोध कीती।
गुबार दी निविरती करके परमानद रूप जो (अशोक पद है) अुह अुपदेश
दुआरा गुर सिज़खां ळ दान कीता भाव अंधेर निविरती तोण लोक सुखी कीता ते गुबार
दूर करके प्रलोक दा सुख दिज़ता।
अंधेरे (हाकमां दे ग़ुलम) ते गुबार (सिरजनहार तोण) विमुखता दा फल
भोगदे प्राणी लोक दुखी ते प्रलोक कशटातुर हो रहे सन। गुरू जोती अरशां विच सी,
जो गान प्रकाश* (शबदि प्रकश)+ गुर प्रकाश** प्रगट करन लई दसोण पविज़त्र सरूपां
विच धरती अुते आई।
अुपदेश (गुरबाणी सरूप++) विच आपणा प्रकाश पाअुणदी जिन्हां प्राणीआण दे
अंदर पुज़जी ओह सिज़ख कहिलाए, अुन्हां दे अंदरोण अंधेर (ग़ुलम करना ते ग़ुलम हेठ
*जोती जोति मिलाइकै सतिगुर नानक रूप वटाइआ।
लख न कोई सकई आचरजे आचरज दिखाइआ।
काइआण पलटि सरूप बणाइआ। ।भा: गु: वा: १ पअुड़ी ४५
*बलिआ गुर गिआन अंधेरा बिनसिआ।
+'सबदु दीपकु वरतै तिह लोइ' ।धना: म: ३
तथाछ- जह कह तह भरपूर सबदु दीपकि दीपायअु। डसवछ मछ ३ के
**'गुर दीपकु तिहलोइ' ।वार माझ म: १
तथा:- बलिओ चरागु अंधार महि' ।सव: म: ५
++ बाणी मुखहु अुचारीऐ होइ रुसनाई मिटै अंधरा ।वा: भा: गु: १ पौड़ी ३८