Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३०४
४२. ।दो चंद दिखाए। तोशेखाने दी गिंती॥
४१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४३
दोहरा: टिकि बैठे जबि सभा महि, श्री हरिराइ तनूज१।
इलम हंकारी परसपर, करते भए रमूज२ ॥१॥
पैकंबर अरु औलीए, गौणस कुतब गन पीर३।
प्रथम प्रसंग प्रबिरत करि, दानशवंद सधीर ॥२॥
चौपई: बचन रुचिर रचि कै चातुरता।
कला अकल ते करि माधुरता।
शाहि सुनाइ प्रसंन करति हैण।
अुचिता अपने दीन धरति हैण ॥३॥
चतुरनि केतिक करे प्रसंगू।
पैकंबर करि सतुति अुतंगू४।पुनहि सराहनि लगि तिन बानी।
जिस बिधि अूचा वचन वखानी ॥४॥
पुन श्री नानक नाम बखाना।
छेरि प्रसंग तिनहु के नाना।
बहुर सु बानी केर ब्रितंता।
जिस महि प्रभु को कहो बिअंता ॥५॥
लाख पताल लाख आकाश।
इक बानी महि कहो प्रकाश।
इस को सुनि संसै मुझ होवा।
रहो बिचारिन कोण हूं खोवा ॥६॥
हमरे मति महि सपत बखाने।
सो भी नीको जाइ न जानै।
इक अकाश ते परै अकाश।
तहि को सूरज चंद प्रकाशा ॥७॥
कोण न इहां ते सो दिख परै।
केतो बीच रचो इत परै५।
१(दे) पुज़त्र।
२रमग़ां, इशारे।
३फकीराण दे दरजिआण दे नाम हन।
४बहुती अुसतत करके।
५इसतोण परे कितनां फरक कीता है।