Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८)३०६
४४. ।बिधी चंद सुंदरशाह प्रलोक॥
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दोहरा: राइ जोध रामा रहो, धरमा सतिगुर तीर।
साहिब भाना ततबिता, अपर कितिक सिख भीर ॥१॥
चौपई: परमानद अरु सुंदर रहो।
गुर समीपता को सुख लहो।
बाक बिलास अनिक बिधि होति।
भगति गान को अनद अुदोत ॥२॥
नाना प्रशन गुरू संग करैण।
सुनहि भले अुर अनद धरैण।
बिधी चंद गुर सेव कमावै।
सुभट तुरंगनि की सुध पावै ॥३॥
लेनि देनि को बड बिवहार।
चलहि देग अनतोट अहार।
गुर के अंतहिपुर पहुचावन।
बसत्र बिभूखन जो मन भावन ॥४॥
गुर मरग़ी को लखि इक बेर।
तिसी रीति बरतहि नित हेरि।
लालचंद निज नदन भायो।
निस दिन गुर सेवा महि लायो ॥५॥
जनम मरन नित भवजल फेरा।
सिज़खी मग चलि सकल निबेरा।
रण को करति रिपुनि कहु जेता१।
आनद लहो महां ततबेता॥६॥
चिरंकाल गुर भगति कमाई।
दरशन ठानति बैस बिताई।
श्री मुखबाक सुनति सुखु मानि।
करे क्रितारथ द्रिग अरु कान ॥७॥
सफल सीस पद बंदन धरति।
तिम हाथनि ते सेवा करति।
गुर कारज महि इत अुत चले।
१जिज़तके।