Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३०७४४. ।बारने दे राहक तोण तंबाकू छुड़ाया॥
४३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>४५
दोहरा: करो निहाल तिखान को,
घर बसि दरशन दीनि।
पुन इज़छा अुर ठानि कै,
चलिबे तारी कीनि ॥१॥
चौपई: श्री गुजरी डोरे असवारी।
जिस छादनि१ मखमल ग़रकारी२।
इक सुंदर संदन संग भले।
मात नानकी जिस चढि चले ॥२॥
ब्रिखभ बिलद बली तन पीन३।
जिन की ककुद तुंग दुति कीनि४।
तिन पर बसत्र लाल ही डाले।
चलनि बेग बहु, स्रिंग बिसाले ॥३॥
ब्रिंद बिभूखन को पहिराए।
जबहि चलति बड शबद अुठाए।
अज़ग्र चलहि रथ पंथ मझार।
पुन डोला लै बली कहार ॥४॥
बहुर बहीर संग जे दास।
को चाकर को प्रेम प्रकाश५।
चले जाहि गुर कीरति करिते।
देश बिदेश विशेश निहरिते ॥५॥
श्री गुर तेग बहादर तरे६।
बली तुरंग बीच गुन खरे७।
८चंद्रिक चंद मनिद बिलद।
सेत बरन, सुंदर दुतिवंद८ ॥६॥१(दा) विछाड़।
२ग़री दा कज़ढिआ होया।
३मोटे।
४जिन्हां दी बंन अुज़ची शोभा दे रही सी।
५कोई नौकर ते कोई प्रेमी दास।
६हेठ।
७जिस विच सुहणे गुण सन।
८चंद दी चांदनी वरगा डाढे चिज़टे रंग दा, ते सुंदर शोभा वाला।

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