Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३०७

४१. ।कज़ठे हो के सारे राजिआण सलाह करनी॥
४०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४२
दोहरा: गयो केसरी चंद तबि,
पंमा जिस के साथ।
जनु लूटो बणीओ किनै,
झुरति जाति धुनि माथ ॥१॥
निशानी छंद: निज रजधानी नगर महि, पहुचे सहिसाई।
अुतरि तुरंगनि ते गए, बैठो जहि राई।
पगिया पटकी१ अज़ग्र तबि, द्रिग अज़श्र छोरे।
सभि राजन महि पति गई, पठि करि गुर ओरे ॥२॥
तिस ते जाचति वसतु को, छित छिज़प्र जु छीने२।
करहि अरादा राज को, बल करि मद भीने।
लातनि मुशटनि कूट करि, हम वहिर निकारे।
हसहि अनद पुरि केर नर, -न्रिपके जन मारे३- ॥३॥
जावद करि कै जंग को,नहि वहिर निकासे।
तावद थिरे निचिंत हुइ, किस के भरवासे।
करि४ समाज संग्राम को, दिन प्रति बनि गाढे।
जे न करहु अुपचार कुछ, तुम को पुरि काढे५ ॥४॥
भीमचंद करि कोप को, कैसे सभि होई।
मिले कि नहि*, बोले कि नहि? कहीअहि सभि होई।
अस बिगार किस बिधि भयो, मारन लगि बाती६।
करहु सुनावनि छोर ते, बीती जिस भांती ॥५॥
सुनि प्रोहित पंमे कही, हम कीनि बडाई।
जाची चारहु वसतु जबि, नहि गिरा अलाई।
देनि कहे जबि रजतपण, सुनि करि अुर क्रोधा।
करे अुठावनि पास ते, प्रेरन करि जोधा ॥६॥


१पटका के सुज़टी।
२छेती ही धरती जो खोहण ळ (तिआर है)।
३राजे दे दास कुटे।
४करदे हन (गुरू जी)।
५तुहाळ (बिलास पुर) शहिरोण कज़ढेगा।
*पा:-मिलके नहि।
६मारन तक नौबत पहुंच गई।

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