Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५)३०६
३२. ।सैदा बेग शरन आया॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३३
दोहरा: ++दै अुमराव लहौर के, दिज़ली के मग जाति।
भीम चंद सुनि बात को, घात जानि भलि भांति ॥१॥
चौपई: आदिक भूपचंद हंडूरी।
सभि के संग गिनी बिधि रूरी।
औचक आनि बनी कोण टरो।
तुरक लरावहु आप न लरो ॥२॥
केतिक दरब देअु अुमराअू।
सतिगुर पुरि बाहर परथाअू१।
नहीण दुरग बड लरिबे कारन।
थोरे सिंघ धरे हथीआरनि ॥३॥
आप आपने अहैण टिकाने२।
सो नहि पहुच सकहि तिस थाने३।
भेड़ अचानक ही बन जाइ।
कौन लरै तुरकनि अगवाइ ॥४॥
लुट जावहि सतिगुर को डेरा।
किम हूं बचै न, हुइ भट भेरा।
हतो जाइ गुर किधौण पलाए।
हमरी बात भली बनि जाए ॥५॥
नहि कलीधर करहि बिगारा४।
हमरो देश न्रिभै हुइ सारा।
इम गिनि सभिनि प्रधान पठाए।
मिले पंथ महिहुइ अगुवाए ॥६॥
सभि राजन को कहो सुनायो।
लघु दल जुति गुर सिवर बतायो।
++सौ साखी दी २०वीण साखी चली।
पुरातन नुसखे दा पाठ भूपचंद है, मगरलिआण ते भीम चंद है। हंडूर दा राजा भूप चंद सी।
१सतिगुरू जी (अनद) पुरोण बाहर पराई थां विच हन।
२टिकाने हन (सिंघ)।
३भाव चमकौर साहिब।
४फिर साडा विगाड़ नहीण कर सकेगा।