Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ३०८
४०. ।पंजाब जाण दी सिज़क। मुहाफा॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>४१
दोहरा: १जे मसंद सिख बय बडे, प्रथम गुरन की रीति।
सो चाहति मन भावती, करहि मेल धरि प्रीत३ ॥ १ ॥
चौपई: नित प्रति गुर के दरशन आवैण।
धरहि कामना बाणछति पावैण।
इह सतिगुर नवतन मग चाहे२।
जगति रीति महि नहिन अुमाहे ॥२॥
संगति पटंे बसहि महानी।
सभिहिनि के मन की गुर जानी।
-इह पूरब नर३ सहिज सुभाअू।
खिनक भाअु धरि खिनक अभाअू४ ॥३॥द्रिड़्ह निहचा नहि धारन करैण।
होहि कामना शरधा धरैण५।
मज़द्र देश को चितवति रहैण६।
अपनो थान रिदै महि लहैण ॥४॥
बडे हमारे बासति नीत।
सभि नर जानति गुर की रीति।
तन मन धनु अरपनि सभि करैण।
इक सम सदा प्रेम को धरैण ॥५॥
जुज़ध पितामे हमरे कीनसि।
रहे संग लरि प्रान सु दीनसि-।
इक दिन पित माता के साथ७।
करो बाक श्री सतिगुर नाथ ॥६॥
मुझ को मज़द्र देश ही भावै।
तहां चलनि को चित ललचावै।
१जे सिज़ख मसंद वडी अुमरा दे हन ते पहिले गुराण दी नीती (दे जाणू हन), ओह (हुण) चाहुंदे हन
कि (असीण) मन भांवदीआण करीए (गुरू जी फेर वी साळ) प्रीती नाल ही मिलन।
२नवाण राह (टोरना) चाहुंदे हन।
३पूरब दे लोग।
४खिन विच प्रेम धारदे हन खिन विच अप्रेम।
५(जे कोई) कामना होवे तां शरधा धारदे हन।
६(असीण तां) पंजाब ळ चितवदे रहिंदे हां।
७(पिता जी दी माता) दादी जी दे नाल।