Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३०९

४१. ।बिज़झड़ वालीआ दाल बज़ध॥
४०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४२
दोहरा: बिज़झड़वालीआ गिरपती, बीर सु बली बिसाल।
जंग घात जानै अनिक, नाम कहैण तिस दाल ॥१॥
भुजंग छंद: मिलो सो कटोची क्रिपाल कि साथा।
कहे बाक तां कौ लखो जंग गाथा।
गुरू संग आनो कलूरी भुवाले।
ढुके बारि नेरे भए आल बाले१ ॥२॥
तजैण ओज ते नांहिनै नीक बाती२।
सवाधान हुजो बनो शज़त्र घाती।
पराजै करै भीमचंदं जि ईहां३।
हसैण भूप सारे मिलैण जाइ कीहां४ ॥३॥
अबै देखि मो कौ करौण जुज़ध भारी।
चले आइ जोअू सभै दोण निवारी।
क्रिपाल कहो मैण रहौण तोहि संगा।
हतौण भीमचंदं भटं अंग भंगा ॥४॥
दुहूं भूप ऐसेजबै मंत्र कीना।
बडो जंग माचो निजं हीन चीना५।
धरे चांप आपे निकासे खतंगा।
हकारे महां बीर ले आप संगा ॥५॥
गहे ब्रिंद सेले तुफंगैण संभारी।
बरूदैण कसी ठोकि गोरी दु डारी।
भ्रमाए अुतंगे धरे हाथ नेजे।
हतैण शज़त्र सौहैण जमं धाम भेजे ॥६॥
चले बार छोरो तबै बाझ लाए६।
बकैण मार मारं खतंगैण चलाए।


१भाव घेरा पा लिआ ने।
२(वैरी दे) ओज करके (जे वाड़ा हुण) छज़ड देवीए तां गज़ल ठीक नहीण।
३साळ जिज़त लवे तां......।
४भाव जिज़थे किज़थे मेल गेल होसी सारे राजे हज़संगे।
५आपणा (पज़ख) घटदा देखके।
६भाव बाहर निकलि वाड़ा छज़ड टुरे (सैना ळ बी) बाहर लै गए (टाकरा करन वासते)। ।संस:,
वाह तोण बाझ बणिआ है॥।

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