Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३१०
४३. ।शेर शिकार। बाग़ दा पुरब जनम॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४४
दोहरा: इक दिन चढो शिकार कौ, नौरंग दुशट बिसाल।
पठो हकारनि दूत को, लाअु तुरत इस काल ॥१॥
चौपई: शीघ्रगयो चलि गुर सुत डेरे।
हाथ जोरि हुइ खरो अगेरे।
कहो शाहु अबि चढो शिकारा।
वहिर ठाढि हुइ तुमहि हकारा ॥२॥
देर न करहु चलहु दरहाला।
खरो शाहु चाहै तुम नाला।
तबि तुरंग पर है असवार।
गमने पंथ शीघ्रता धारि ॥३॥
जाति अखेर हेतु जित शाहू।
पहुचो सतिगुर सुत तित राहू।
खरो भयो नौरंग ने हेरा।
दीनसि एक मतंग अुचेरा ॥४॥
हुइ आरूढ चले समुदाया।
शाह अखेर प्रसंग चलाया।
को बन को म्रिग मारहि आज?
को हम आगै जै हहि भाज? ॥५॥
कितने हम लावैण करि घात?
सो सगरी बतलावहु बात।
सुनि श्री रामराइ बच कहो।
कुछ न हाथ आव जो चहो ॥६॥
एक शेर निकसै बल भारा।
करहु जतन तिस के हित सारा।
तअू न मार खाइ तुम पास।
आवहु छूछे हटे निरास ॥७॥
सुनति शाहू ने सभिनि सुनायो।
जे करि आज केहरी आयो।
सभि तुम सुनति होहु सवधान।
जोण को करहु प्रान तिह हान ॥८॥