Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३१३
३३. ।होली अुज़पर दो इसत्रीआण। हिंदू ते मुसलमान वडके॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३४
दोहरा: मार ग्राम बजरूड़ को, दुंदभि दीह बजाइ।फते पाइ पुरि मैण प्रविशे, गरजे फते बुलाइ ॥१॥
चौपई: जहि कहि सुध पसरी भा जंग।
दुरग दीह दिढ ततछिन भंग।
अरो न कोई सिंघनि आगे।
अुबरे दीन भए१, कै भागे२ ॥२॥
पंथ बिसाल बिदत नित भयो।
सभिनि चुगिरदे डर अुपजयो।
सिंघन को संघर लखि गाढो।
कौन सुभट आगे हुइ ठांढो ॥३॥
हतहि तुफंगनि को करि हेला।
अूपर परहि रेल अरु पेला।
तबि ते डर धरि ग्राम बिसाला।
संगति को न कहैण किस काला३ ॥४॥
संधा सुबहि४ चली मग आवै।
दुशट मिलहि को हाथ न पावै।
प्रथमे आलसून कहु मारा।
नुह, बजरूड़ बहुर संघारा ॥५॥
जो अबि संगति को कर पावै।
तिन मानिद५ आप अुजरावै।
लेनि रहै६ देनो बन जाइ।
मरन होइ पुन घर अुजराइ ॥६॥
श्रीगुर गोबिंद सिंघ हठीला।
कौन अरहि तिन संग अरीला।
इज़तादिक कहि आपस मांही।
१नीवे होके बचे।
२या भजके।
३किसे वेले संगत ळ कुछ ना कहिं।
४शाम सवेरे, भाव हरवेले।
५तिन्हां (पिंडां) वाणग।
६लैंा तां किते रहिआ।