Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३१६

३८. ।अंम्रत सरोवर दे चिंन्ह प्रगट होए॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगलाअंसू>> ३९
दोहरा: पिंगल मज़जन जबि करो, भयो सरीर अरोग।
बिसमत बुधि महि देखि फल, करि अनदु हरि सोग१ ॥१॥
चौपई: मनहु पान अंम्रित को करो।
जरा आदि रुज सभि परहरो।
जनु समरथ सुर होइ प्रसंन२।
करो शकति निज ते तन अंन३ ॥२॥
सुंदरता मंदिर तनु होवा।
अखिल बिकारन को तबि खोवा।
प्रभू क्रिपा असु काइआण धारी।
जिस ते होइ न सकहि चिनारी ॥३॥
नख शिख ते बोरो निज गात४।
बार बार मज़जति हरखाति।
जथा अचानक नरकी जीव।
सुरगी बनहि महां सुखि थीव ॥४॥
जनमु रंक चिंतामणि पाई।
हरखो जिमु नवनिधि घर आई।
बसत्र बिभूखन सुंदर जोग।
इमु सुंदर बन गयो अरोग ॥५॥
तिस बज़दरी तरु के तर थिरो।
खारी अुलट सु आसनु करो।
बैठि रहो मनु मोद बढाइ।
प्रिया प्रतीखति५ द्रिग तित लाइ ॥६॥
भिज़खा तुंगु ग्राम ते लीन।
राजु कुइर पतिब्रता प्रबीन।
अपुनो धरमु बिखै सवधाना।
निज पति बिनु कबि चहै न आना ॥७॥१शोक दूर कीता।
२मानोण समरज़थ देवता ने प्रसंन होके।
३होर शरीर।
४नहुं तोण सिर तक डोब दिज़ता अपणा सरीर।
५इसत्री ळ अुडीकदा है।

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