Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३१६

४४. ।कलप ब्रिछ दे फल। केस काले कीते। जमना पर टुरे॥
४३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४५
दोहरा: सभा अुठी निज थल गए,
नदन स्री हरिराइ।
अग़मत करति दिखावते,
देर न तनक लगाइ ॥१॥
चौपई: शाहु अधिक सेवा कअु करिही।
देखति अग़मत अचरज धरिही।
पुन अुलमाअुनि शाहु सिखायो।
है बहिशत महि ब्रिज़छ सुहायो ॥२॥
कलप ब्रिज़छ१ तिह नाम बिदत है।
फल तिस के भखि करति मुदत है।
सो मंगवावहु खावहु आप।
जिस के भज़खति हति हैण ताप ॥३॥
मिलि आपस महि मुज़लां कहैण।
तिस को फल प्रापति नहि इहै।
जाचहि शाहु दिए नहि जाहि२।
शरधा पुन न रहै मन मांहि ॥४॥
तिन ते सुनतिशाहु भल जानी।
-अस अदभुत फल आवसि पानी३।
वसतु भिशत की आइ भि नांही।
जाचौण, जबि प्रापति मुझ पाही४- ॥५॥
मन मैण नौरंग ने द्रिढ राखी।
सभा लगे गुर सुत को भाखी।
हम ने सुनोण भिशत के मांहि।
कलप ब्रिज़छ सुंदर फल जाणहि ॥६॥
तिस के गुन ऐसे सुनि पाए।
भज़खनि करे रुधर बन जाए।
सरब देहि महि पसरहि सोइ।

१मुसलमानां विच इसळ तूबा कहिदे हन।
२भाव रामराइ जी तोण दिते नहीण जाणगे ओह फल।
३हज़थ आवेगा।
४जदोण आवंगे (श्री रामराइ जी) मेरे पास।

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