Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ३१७

३९. ।काणगड़ पुरोण कूच॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>४०
दोहरा: सुनिआरे आदिक सकल, निस महि करी सु कार।
खान पान करि सतिगुरू, पौढे निद्राधारि ॥१॥
चौपई: जाम जामनी सतिगुर जागे।
सौच शनान करनि अनुरागे।
कहि करि दुंदभि को बजवायो।
महां धुनी जनु घनु१ गरजायो ॥२॥
सुनति जोध पुरि महि तबि जागा।
सौच शनान करन कहु लागा।
दोनहु धुजनी२ के भट भारे।
जाग्रति कीनि सुचेता३ सारे ॥३॥
शसत्र बसत्र पहिरे निज अंगा।
डारे सुंदर ग़ीन तुरंगा।
सुभट सकल अुतसाहु समेत।
चाहति बिजै करो रण खेत ॥४॥श्री हरिगोबिंद चंद अनदे।
हित रण के अुतसाहि बिलदे।
बसत्र नवीन सरब ही पाए।
दीरघ जामा गरहि सुहाए ॥५॥
सुंदर सेत बडी दसतार।
ग़रीदार जुग छोर४ अुदार।
पेच अनूठे५ करि करि लाए।
अूपर बाणधी जिगा सुहाए ॥६॥
जरे जवाहर जागति जोति।
दीपति दिपति सु दीपति होति६।
तीखन खंडा खरो दुधारा।


१बज़दल।
२सैना।
३सौच शनान।
४दोवेण पज़ले।
५अचरज।
६दीवे (जिवेण) प्रकाशदे हन (तिवेण) सो प्रकाशदे हन।

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