Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३१९
४३. ।नाहण दे राजे दा वग़ीर आइआ॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४४
दोहरा: सगरो सैलपतीन महि, बितदो सकल ब्रितंत।
भीमचंद अरु गुरू को, बधो बिरोध अतिअंत ॥१॥
हाकल छंद: इक नाहन नगर बिराजा*।
गिर अूपर सुंदर साजा।दुति अदभुत जिस की सोहै।
थल तुंग महित पर जो है१ ॥२॥
तहि राजा राज करंता। रजधानी ठानि बसंता।
परकाश मेदनी नामू।
तिन सुनो गुरू अभिरामू ॥३॥
पुरि अनद मझार बसंते। सिख संगति आइ निवंते।
बहु करहि शसत्र अज़भासा।
दल राखो दीरघ पासा ॥४॥
बड जंग करनि को जोधा। नहि गिनहि अपर, जबि क्रोधा।
बहु करामात महि पूरा।
सर२ पहुचहि दीरघ दूरा ॥५॥
सुनि राजा अुर हरखायो। हित दरशन अुर बिरमायो।
-गुर संग जि होवहि मेला।
सभि कारज बनहि सुहेला+- ॥६॥
निज मंत्रिन संग बिचारा। गुर पूरन हरि अवतारा।
हुइ थिरु श्री नानक गादी।
पुरि आनद कीनि अबादी ॥७॥
*नाहन सिरमौर ते डेहरादून ळ जमना नखेड़दी है। अुरार सिरमौर दी दून है ते पार डेहरादून।
१बहुत अुज़चे थां पर जो है।
२(अुहनां दा चलाइआ) तीर।
+इस दा भाव इह है कि नाहन दे राज दा गड़्हवालीए राजे नाल वैर सी, गड़्हवालीए इलाके
विच रामराइ जी वसदे सन, जिन्हांदा देहुरा हुण तक ओथे है। डेहरादून रामराइ तोण ही
डेहरादून नाम रहि गिआ है। गड़्हवालीए ळ रामराइ जी दी मदद सी, ते रामराइ दी शाही
दरबार विच रसाई होण करके लोकीण डरदे सन, दूजे करामाती समझदे सन। इस लई नाहन दा
राजा कुछ खुहा बैठा सी ते हर वेले डरदा सी कि किसे वेले सारा राज ही ना खुहा बैठां। अुस ने
सतिगुरू जी दी आतम शकती ते बीर शकती दा लाभ अुठाअुण लई आपणे इलाके विच सज़द
घज़लंा मुनासब जाता, इह गज़ल कवी जी ने अज़गे चज़लके इसे रुत दे अंसू ४६ अंक १६. १७ विच
वरणन कीती है ते राजा ळ शरधालू दज़सिआ है। देखो अंक २७, २८ इसे अंसू दा।