Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३१९४६. ।माता नानकी ते मरवाही॥
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दोहरा: अलप बैस महि सुमति करि, प्रण ठानो हरिराइ।
बाक पितामे के सुने, राखे रिदे टिकाइ ॥१॥
चौपई: श्री हरिगोविंद पौत्र निहारा।
बचन आपने के अनुसारा।
जबि कबि देखहि कर सोण जामा।
गमनति संकोचति अभिरामा ॥२॥
दीरघ छोर न१ कबिहूं चाले।
पहिरहि सूखम जिह सौ पाले।
गुर प्रसंनता करिबे लागे।
निकटि बिठावहि अुर अनुरागे ॥३॥
दिन प्रति अधिक होति रु जावै।
म्रिदल बाक कहि अनद अुपावैण।
सिख संगति सभिहिनि लखि लीनसि।
-पौत्रे पर करुना मन भीनसि- ॥४॥
सूरजमल पित आशै चीना।
-श्री हरिराइ चहैण गुर कीना-।
निज जननी संग गाथ बुझाई।
दई चहिति पौत्रे बडिआई ॥५॥
तथा नानकी सुधि सुनि पाई।
मरवाही जुति चित दुचिताई२।
करहि बिचार३ कहां इहु भावै।
सुत तजि पौत्रहि को बडिआवैण ॥६॥गुन गन सहित सदा अनुसारी।
पिता अज़ग्र कछ नहि हंकारी।
प्रथम गुरनि निज पुज़त्र न दीनि।
नहि अपने अनुसारी चीनि ॥७॥
सिरीचंद अरु लखमीदास।
१खुला छज़ड के ना।
२चिंता होई।
३माता नानकी विचार करदी है।