Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३२३
सज़चनि सज़च१ गहो तिन२ हेरि।
गर लपटी मुख दंतनि काटति
करे नखन के घाव घनेरि।
छूट चहो, बल करो आपनो,
तअू न छोडो त्रास बडेरि३ ॥२४॥
घाइल भयो, रुधिर बहु श्रवो४
करहि जतन छूटन तिसि पास।
नीठि नीठि५ तिस दूर करो जबि
अपनो जोर बिसाल प्रकाश।
बडि लकरी कर महिण तबि धारी
इक दुइ हती६ पाइ बड त्रास।तबि तजि करि कानन दिश गमनी
महिद बावरी सुधि बुधि नाश ॥२५॥
ईणधन कुछक सकेलो७ त्रासति,
तूरनि बंधि हटो पुरि ओरि।
आगे चलति पिखति बहु पाछे
त्रास भरो अुर देखे घोरि।
गोइंदवाल पहूणचो आइ सु
रुधरि श्रवति अरु लकरी थोरि।
अवलोकति सभि लोकनि बूझो
कहां भयो तुझ को किस ठोर? ॥२६॥
श्री सतिगुर निज निकट हकारो
पूछति भए कहां इह कीन?
किन तन घाव करे तुझ मारो
रुधरि श्रावते, अुर भै भीनि८।
१सज़च निसज़च ळ।
२ओस ने।
३बहुत डरावे।
४सिंमिआण।
५मसां मसां।
६मारीआण।
७कज़ठा कीता।
८भाव दिल भै नाल भर रिहा है।