Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ३२१
४२. ।सिज़खां दे प्रसंग। वकता श्रोता चौदां गुण॥
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दोहरा: मनसा धारि सु तुलसीआ,
दरगहि तखतू धीर।
तीरथ अुज़पल१ संग मिलि,
आए श्री गुरु तीर ॥१ ॥
चौपई: बंदन करि सभि बैठे पास।हाथ जोरि अुचरी अरदास।
सज़चे पातिशाहु हम सुनैण।
सिज़ख अनेक अरथ जे भनैण ॥२॥
मन को शांति न किस को आवै।
इत अुत ते हटि थिर न रहावै।
निवला अपर निहालू दोइ।
कथा अुचार करति हैण सोइ ॥३॥
त्रास बिकारनि ते हुइ तबै।
दुरमति अुर ते परहरि सबै।
गुरुमति को प्रापति चित होति।
गुन गन हिरदे जोति अुदोति ॥४॥
सुनि श्री हरिगोविंद बखाना।
अंम्रित सतिगुर शबद महाना।
बकता महि चौदह गुन होइ।
गान पाइ तिस ते सुनि कोइ ॥५॥
तिम श्रोता महि चौदस गुन हैण।
तुरत गान प्रापति जे सुनिहैण।
जे गुन होहि न दोनहु मांहीण।
तूरन गान सु प्रापति नांही ॥६॥
जे इक बकता महि भी होइ।
श्रोता को प्रापति सुनि सोइ२।
बूझन करे गुरू३ गुन जेई।
१भ: माला विच चार नाम हन:मनसाधार, दरगह तज़ली, तखत धीर, तीरथ अुज़पल।
२जो (चौदां गुण) इक वकता विच बी होण तां श्रोता ळ सुणके प्रापत हो जाणदे हन।
३गुरूजी तोण पुज़छिआ (सिज़खां ने)।