Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 31 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४६

सारद आदिक बकता तेई।
चतुर शेश आदिक बड कहियति+।
हनुमत आदि दास जे लहियत ॥२६॥
सभि के प्रथमैण नाम सिमरिअूण।
धर पर धरि सिर नमो अुचरिअूण।
सभि बिधि होहिण सहाइक मेरे।बिघन बिनाशहु रहि मम नेरे ॥२७॥
गनपति = गणां दा पती, गणेश। शिव दा बी नाम है।
आदि = इसतोण मुराद-आदिक-दी है किअुणकि अगे ब्रहमा दे नाल पद
आदिक लाइआ है, वसिशट रामचंद नाल पद आदिक है, सो जिज़थे मात्राण ने
आगिआ नहीण दिज़ती ओथे पद-आदि-है, जिथे दिज़ती है अुथे-आदिक-पूरा दिज़ता
है। आदि ळ आदिक ना समझके कई गानी इसदा अरथ आदि समेण तोण लै
के करदे हन।
सुर गुर = देवतिआण दा गुरू-ब्रहसपत।
रजधानी = रजधानी तोण मुराद राज, विभूती, अमीरी।
पारे = पारे, जो पार पा लवे, भाव बेदां दे गाता।
(अ) पारे ळ पारे दा संखेप वी समझ लैणदे हन।
मिरजादिक = मिरजादा वाले, मिरजादा विच पज़के।
जन प्रिय = भगतां ळ पिआर करन वाले।
घनशाम = बज़दल (समान) काला, इक नाम है क्रिशन जी दा।
प्रतज़गा = इकरार, कौल। ततज़गा = तज़त ळ जाणन वाले।
समुदाइ = सारे। भूत = बीत गिआ समां।
भवान = वरतमान समां। भविज़ख = आअुण वाला समां।
बंदन = नमसकार, प्रणाम, (अ) कीरति करनी, अुसतति करनी। सीतलरासहि = जिन्हां दी राशि ठढी है, भाव सुभाव ठढा है, रास नाम लील्हा दा बी है,
जो ठढी लील्हा पाअुणदा है, भाव जिसदा प्रकाश सीतल है। (अ) रास = खां।
सीतलत दी खां।
सारद = सारदा, सरसती।
बकता = कहिं वाला, वाखा करन वाला। (अ) सिज़खादाता। (ॲ) फसीह
(ोरअटोर) मनोहर वज़खान करन वाले।
अरथ: गनपत आदि जो विघनां दे नाश करन वाले (होए हन), ब्रहमा आदिक जो
खुशी दे करन वाले (मंने जाणदे हन), ब्रहसपत आदिक स्रेशट बुज़धी दे दाते,
बालमीक आदिक जो बाणी दे कवि होए हन ॥२०॥


+ तुकाणत पाठांत्र:-कहीअति, लहीअति।

Displaying Page 31 of 626 from Volume 1