Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३२३

४५. ।गड़े बंद कीते। मसत हाथी ते चड़े॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४६
दोहरा: इक दिन बैठे सभा महि, नदन श्री हरिराइ।
बडी गरज कै घन घटा, आइ गैन अुमडाइ ॥१॥
चौपई: बहो बेग बहु बायू संग।
कड़कहि तड़िता दमक अुतंग।
बरखा करका की बडि आई१।
परनि लगे छित शबद अुठाई ॥२॥
अधिक तोल महि गिरैण बडेरे।
छादी२ छित, भई सेत घनेरे।
घटा एक सम चहुदिशि मांही।
परहि जहां कहि मिटहि सु नांही ॥३॥
पिखि नौरंग ने बाक बखाना।
सुनहु गुरू सत!सगरे थाना।
ओरे परे दीन दुख पावैण।
वहिर खेत सभि को बिनसावैण ॥४॥
अुपबन महि फल फूल बिनासहि।
सभि तरुवर की शोभा ग्रासहि।
वहिर पसू गो आदि घनेरे।
तिन पर लगे प्रहार३ बडेरे ॥५॥
हिंदू धरम तुमारे सोइ।
बचन करहु रज़छा तिन होइ।
नांहि त मरि जावहिगे घने।
अस ओरे नहि देखे सुनै ॥६॥
वहिर पसू का खेत बिसाले।
सभि की हानि होइ इन नाले।
करहु बाक सभि केर भलेरा।
सुनि श्री रामराइ तिस बेरा ॥७॥
कहो जि इम है तुमरे मन मैण।


१गड़िआण दी बरखा बहुती आ गई।
२ढकी गई।
३सज़टां।

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