Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ३२७
३५. ।राजिआण दी गुरू जी नाल जंग दी तिआरी॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३६
दोहरा: *इम बीते केतिक दिवस, भीमचंद दुख पाइ।
पठे दूत गिरपतिनि ढिग, अपनो कशट बताइ ॥१॥
चौपई: श्री गुर गोबिंद सिंघ अुदारा।
नित चाहति संग्राम अपारा।
पंथ रचो नित शसत्रधारी।
मारन मरन बनहि बल भारी+ ॥२॥
आगै रण घाले घमसाना।
मरे बीर लरि लरि करि जाना१।
दिज़ली पति के दल बहु आए।
किसि बिधि किस को बस न बसाए ॥३॥
गहो न गयो न मारो गयो।
इह प्रसंगतौ दूरहि भयो।
लरति जुज़ध नहि किनहु भजावा।
अरो रहो, जै को करि दावा ॥४॥
इज़तादिक लिखि सकल हकारे।
पठे पज़त्र पठि२ हुइ न्रिप तारे।
मिज़त्र कि शज़त्र कि सम गुर साथ।
चलि आए इक थल गिरनाथ ॥५॥
प्रथमे भीमचंद कहिलूरी।
भूपचंद सैलप हंडूरी।
आइ चंबेल, फतेपुरि वारो३।
नाम वग़ीर सिंघ बलि भारो ॥६॥
देव शरण नाहण को राजा++।
*इह सौ साखी दी २१वीण साखी है।
+पा:-धारी।
१जानां लड़ा लड़ाके।
२भेजे होए पज़त्र पड़्हके।
३वाला।
++नाहण दे राजे नाल पाअुणटे निवास तोण तअज़लकात मिज़त्रता दे सन ते अखीर तक रहे हन
किअुणकि चमकौर संग्राम तोण पहिली रात आपणे दोहां भरावाण गुलाब सिंघ शाम सिंघ ळ गुरू जी ने
नाहण दे राजे पास पुज़त्र देके टोरिआ सी कि इन्हां ळ पिंड देके आपणे पास बसाओ। ।देखो रुत ६
अंसू ३२॥ जे पज़की मिज़त्रता ना हुंदी तां भरावाण दी सलामती ओथे कीकूं समझी जाणदी। इस करके