Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३२९
४२. ।माछीवाड़ा॥
४१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>४३
दोहरा: परखा लघु१ सो अुलघ करि, खरे भए बलवंत।
पुन सिंघन के संग इम, बोले श्री भगवंत ॥१॥
सैया छंद: अबि हम रौरा चाहति पायो
गहि शसत्रनि होवहु सावधान।
सुधि को दे करि सगरे लशकर
अुलघहि डेरे करहि पयान२।यौण कहि अूची धुनि ते बोले
दे हाथन ताड़ी भगवान।
हिंदुनि पीर चलो अबि निकसो
घेरहु तुम महि जो बलवान ॥२॥
तीन बार श्री मुख ते कहि करि
दूर दूर लौ बाक सुनाइ।
दौरे एक बार सुनि रौरा
बाम दाहने सनमुख आइ।
दस हग़ार को फिरति तलावा३
सुनि अवाग़ धाए चितचाइ।
दोइ मसालैण जलति अगारी
आवत पिखि गोबिंद सिंघ राइ ॥३॥
धनुख बिखे संधे दै खपरे
तान कान लौ दए चलाइ।
गए गाज सम कटी मसाला
पुन भट बेधि दिए अुथलाइ।
परो रौर चहुदिशि ते अुमडे
मारहु गहहु पुकारति आइ।
हय दौरे खुर खेह अुडी बहु
अंध धुंध है गो इक भाइ ॥४॥
मचो कुलाहल भिड़े भेड़ भट
१छोटी जिही खाई।
२डेरिआण ळ लघके चज़लंा कराणगे।
३पहिरे दी फौज।