Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 316 of 412 from Volume 9

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३२९

४६. ।निदक दी ग़बान बंद। दिने तारे। बाग़ी जिज़ती॥
४५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४७
दोहरा: इक दिन आए सभा मैण, नदन श्री हरिराइ।
सनमानति नौरंग ते, बैठे मोद अुपाइ ॥१॥
चौपई: जे गाढे बिच शर्हा हठीले।
करता बाद बिसाल कुशीले१।
अनिक माइने बकहि कुराने।
दीन बिखै कहिलावहि साने ॥२॥
अधिक समाज तिनहु कहु होवा।
जिनहु सिखाइ शाहु को खोवा२।
शुभ करतूत करनि महि हौरे।
झगरनि बिखे सेमुखी गौरे३ ॥३॥
महां मंद मति, मूरख, मानी।
शाहु रिझावहि धन हित दानी४।
सभा मझार प्रसंग चलाए।
बहुरगुरू कहु नाम अलाए५ ॥४॥
श्री नानक बड भए तुमारे।
भेख फकीरी फिरे बिचारे।
नयो आप मारग अुपराजा६।
नहि हिंदू नहि तुरक समाजा ॥५॥
पैकंबर बड भए हमारे।
जिन के समसर जगत न सारे।
मिलिनि खुदाइ राहु शुभ कहो।
चले कहे महि७ तिनहूं लहो८ ॥६॥
जिस सोण मिलि मन होइ बिकारी।
सो श्री नानक रीति बिथारी।

१बड़े खोटे सुभाव वाले झगड़ा करन वाले सन।
२गुआ दिता।
३भारे बुधीमान।
४(शाह) धन देवे इस वासते।
५मुराद निदा करन तोण है।
६साजिआ।
७जे (पैकंबर) दे कहे विच तुरन।
८तिन्हां (खुदा दा राह) जाणिआण।

Displaying Page 316 of 412 from Volume 9