Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३३०

४७. ।कड़े ग्राम दा मलूक दास॥
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>४८
दोहरा: सिज़खनि प्रेम बिचारि कै, तेग बहादर चंद।
मिस तीरथ इशनान को, कहि करि चले मुकंद ॥१॥
चौपई: कड़े सु मानिकपुर१ के राहू।
गमने सतिगुरु बेपरवाहू।
संग फकीरनि को समुदाइ।
सिमरन श्री प्रभु करते जाइ ॥२॥
बसत्र कखाइ२ जिनहु ने धारे।
कर तूंबे जल पीवनहारे।
सिर पर अूची टोपी धरैण।
कितिक बिभूतन मलिबो करैण ॥३॥
ब्रिंद सिज़ख जे चड़्हे तुरंग।
बसत्र शसत्र सुभ धरि कै अंग।
प्रथम पहूचे सुरसरि थान।
निरमल नीर पुनीत महान ॥४॥
जाइ कूल पर कीनसि डेरा।
पाप निवारनि दरशन हेरा।
मनभावति सभि करो शनाना।जथा शकति दे करि दिज दाना ॥५॥
दै दिन टिके सुरसरी तीर।
दरसहि सतिगुरु को नर भीर।
तहि ते आगे गमने सामी।
पुरनि कामना सिज़खनि कामी३ ॥६॥
थल कछार४ को सुंदर आवा।
खिलति अखेर तहां मन भावा।
आमिख पावन है जिन केरे५।
हते हेरि करि फिर तिस बेरे ॥७॥


१कड़े ते मांिक पिंड दे राह।
२भगवे।
३कामनां वाले सिज़खां दीआण कामनां पूरीआण करन लई।
४नदी आदि दे कंढे दी भोण।
५जिन्हां दा मास पविज़त्र हुंदा है।

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