Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि २) ३३१

४०. ।श्रोतिआण ने पुरातन नामी सिज़खां दे प्रसंग पुज़छे॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ४१
दोहरा: श्री अंम्रितसर कार को,
लगे मनुख समुदाइ।
सदाबरत१ श्री गुर करो,
करहि कामना पाइ२ ॥१॥
चौपई: को निज ढिग ते करहि अहारा।
निस दिन करहि ताल की कारा।
जित दिशु अधिक खुनावनि चाहैण।
तित श्री अरजन पद करि जाहैण३ ॥२॥
फरश होहि बैठहि गुर गादी।
करहि दास क्रित हीन प्रमादी४।
गुर दरशन दरसहि दिनु सारे।
धरहि अनद हुइ दुगनी कारे ॥३॥
दुखभंजनि ढिग थरा* करावहि।
तहि गुर बैठहि कार करावहि।
जबि इस दिश ते खनो महांना।
अपर थान बैठन को ठाना ॥४॥
दार दरशनी जिस थल करो।
दज़खन दिश बज़दरी तरु खरो+।
तहां जाइ बैठहि गुर पूरन।
म्रितका खनहि निकासहि तूरनि ॥५॥
जिनहु नरहु बर बडिभागे।
रहि हग़ूर सर सेवा लागे।
सज़तिनाम को सिमरनि करैण।१लगर।
२(जो मनुख सेवा) करदे हन, सो (आपणी) कामना प्रापत करदे हन।
३चरणी तुरके (अ) निशानी करदे जाण।
४कार करन सावधानता नाल।
*इह थड़्हा अठसठ तीरथ ते दुखभंजनी दे विचकार हैसी, जो अकाली अंदोलन विच ढाहके पौंा
बणाइआ गिआ, पर निशान वाली बुरजी खड़ी रही। संगतां दी सखत नाराग़गी करके सं ४५९-
६० ना सा विच पौंा पूरके फेर थड़्हा साहिब बणाया गिआ है ते अुते संगमरमर दी मंजी
साहिब निशान वाले थां रची गई है।
+इस ळ लाची बेर कहिदे हन। इथे गुरदुआरा है।

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