Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३३४
४५. ।कीरत पुर होके नाहण प्रवेश॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४६
दोहरा: बसत्र पहिर भूखन पहिर,
शसत्र पहिर तन लीनि।
श्री गुरू गोविंद सिंघ जी,
तारी कीनि प्रबीन ॥१॥
सैया छंद: दुंदभि दीह बजो रणजीत,
अुठे बड नाद पहारन केरे।
श्रौन सुनोण सभि सैन तही छिन,
तार भए गज बाजिनि डेरे।
ग़ीन सजावनि कीनि तबै अस
पीनन पै ग़री दोग़१ बडेरे।
हौद अंबारन झालर झूलति,
भूलति देव मनोहर हेरे ॥२॥
चज़क्रित२ चौपति चंचल चातरु
चोरति चीतन चाअु चईला।
चौकस चारहूं ओरन को
चितवंति बिलोचन तेचरचीला३।
छाल अुछाल ते छूटं छोभति
सुंम छुवैण छित छिज़प्र छबीला।
पौन कहां, म्रिग छौन कहां,
गुरदेव को गौन तुरंगम नीला४ ॥३॥
३जोति जवाहर जाहर ग़ीन
जराअु जरो जिह जेब अजाइब।
झालर कोर ग़री चहुं ओरन,
१ग़री दे कंम वाले।
२चक्रित दा अरथ है हैरान हो रिहा है, मुराद काहले पैं तोण है। (अ) अकारण डर दज़सके घोड़े
दा काहला पैंा। ।संस:, चकित॥।
३चरचीला = शिंगारिआ जा रिहा। (अ) चंचल।
४इस छंद दा अरथ ऐअुण है:-चाअु विच चड़्हिआ चंचल ते चातुर (घोड़ा) खुशी हुंदा होइआ
काहला पै रिहा है ते (देखं वालिआण दे) चिज़तां ळ चुरा रिहा है। शिंगारिआ जा रिहा चौकस होके
चारोण पासे अज़खां नाल वेखदा है। जद छुज़टदा है तां तमक विच आइआ छालां विच अुछलदा है
(इअुण) कि धरती ते सुंम इस तेग़ी नाल छुहदे ते सुंदर लगदे हन (कि) गुरू जी दे नीले घोड़े
दी चाल नाल हवा किथे ते हरनोटा किज़थे (मेल खा सकदे हन)।