Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३३४
४४. ।आनदपुर। बाबा ग़ोरावर सिंघ जी जनम॥
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दोहरा: सुनि सतिगुर आगवन कौ,
पुरि जन अुर हरखाइ।
निकसे आगू लेनि हित,
सादर मिले सु आइ ॥१॥
निशानी छंद: ले ले अनिक अकोर को, करिगुर सोण मेला।
दरशन कौ आनद ले, करि जनम सुहेला।
धुनि दुंदभि रणजीत की, सुनि सुनि गन आवहि।
दौर दौर पुरि पौर तजि, दल युति दरसावैण ॥२॥
मंगल अनिक प्रकार के, पुरि बिखै रचंती।
पौर पौर पर ससिमुखी१, थिर हुइ दरसंती।
प्रविशे प्रभू बग़ार महि, देखति नर नारी।
गन चकोर जनु चंद को, आगमन बिचारी ॥३॥
पुशपन कअु बरखावहीण, गुंदति दैण माला२।
ग्रहन करति लखि भाव कअु, हुइ हरख बिसाला।
चख बिसतिरति सरोज ते३, सभि की दिशि देखैण।
कुशल प्रशन सभि सोण करहि, दे मोद बिशेखैण ॥४॥
भाट नकीब पुकारते, सभि अज़ग्र चलते।
सुजसु बखानति प्रभू कअु, सभिहूंन सुनते।
प्रविशहि सतिगुर दुरग महि, जो बनो नवीना।
भांत भांत के ग्रिह रचे, सुखदा दुति भीना ॥५॥
अुतरि तुरंगम ते गए, सुंदर घर मांही।
पीठ पलघ की पर थिरे, धरि आयुध पाही।
नद चंद प्रोहत दुती, अरु तीनहु भ्राता।
आइसु ते निज निज सिवर, अुतरे सुखदाता४* ॥६॥
सभि सैना के सूरमे,आइ सु लुट लाए५+।
१चंद्र मुखी (= इसत्रीआण)।
२गुंदीआण माला दिंदीआण हन।
३खिड़े होए कमल वत नेत्राण नाल।
४सुखदाते दी आगिआ नाल।
*पा:-सुखगाता।
५(नाल) जो लुट लिआए सी।