Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 324 of 453 from Volume 2

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३३७

४१. ।भाई भगतू जी दी जनम कथा॥४०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ४२
दोहरा: सिज़धू कुल महि जाट इक, भुज़लरीए शुभ गोति।
आदम जिस को नाम है, घर संतति नहि होति ॥१॥
सैया: *आदम नाम भयो तिसि बंस मैण,
कार करै क्रिशि१ भाग बिलदा२।
नदन होवनि को बितवै बहु,
काल बितावहि चिंत अमंदा३।
बीत गए बहु संमत या बिधि,
संतति नांहि भई सुखकंदा।
पीर बिसाल फकीरन जाल,
रहो सभि सेवति भाव सु४ ब्रिंदा ॥२॥
चौपई: सेवा करति रहो चिरकाला।
संतति की अभिलाख बिसाला।
किह ते प्रापति भई सु नांही।
चिंता चितवति बहु चित मांही ॥३॥
को इक मिलो सिज़ख जबि गुरु को।
तिह सोण कहो मनोरथ अुर को।
नीके कीने अनिक अुपाइ।
प्रापति पुज़त्र न मुझ किस थाइ ॥४॥
सुनि कै सिज़ख कीनि अुपदेश।
मानहु मेरो कहो अशेश५।
श्री नानक भे जग अवतार।
निरंकार के बने अकार ॥५॥
तिनि पीछै गुरु अंगद भयो।
अमरदास पुन तिसि थल थियो।

* इह कैणथलकुल दा प्रसंग है। इहो प्रसंग कवि अुलथित रासैं दे लकाण काणड सरग १३०-३१
विच है। थोड़े पाठ भेद तोण छुट इह अुथोण दा अुतारा है। अुह रचना १८९१ दी है। विशेश लई
देखो प्रसतावना सिरलेख बा: रासैं।
१खेती दी।
२बड़े भागां वाला।
३अमंद = ना+मंद = भाव तीबर चिंता विच।
४पिआर नाल।
५पूरी तर्हां।

Displaying Page 324 of 453 from Volume 2