Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३४२
को जानहिण गमने किस धिर१ ते ॥४६॥
पीछै दातू सभि किछु लीनि।
अपने सदन पयानो कीन।
इक बड़वा२ तिन तागनि करी।गुरु की प्रिय अति सो घर खरी ॥४७॥
इस को दातू लेवन लगो।
चड़्हन न दियो प्रिथी पर डिगो।
-लेइ सु चलौण- जतन करि रहो।
नहिण अरूढ करि आसन लहो३ ॥४८॥
चपल तुरंगनि सतिगुर पारी।
रही आप, दिय नहिण असवारी।
यां ते गयो ताग करि सोअू।
अपर संभार लयो घर सोअू ॥४९॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रिथम रासे श्री अमरदास खोजन
प्रसंग बरनन नाम पंच त्रिंसती अंसू ॥३५॥
१किसे धिर = किधर = किस पासे।
२घोड़ी।
३चड़्हके अुते बैठ नहीण सकिआ।