Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ३४३४५. ।अयुज़धा होके लखनौर पुज़जे॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>४६
दोहरा: सगरी निस महि सिख मिलैण,
शबद अनिक बिधि गाइ।
ताल म्रिदंग रबाब ते,
सतिगुर भले रिझाइ ॥१॥
चौपई: प्राति भई गुर कीनि शनाने।
सिज़खनि चरन पखारनि ठाने।
चरनोदक लै निज निज धामू।
पान करो ले श्री प्रभु नामू ॥२॥
सभि थल महि छिरकावनि करो।
सहत कुटंब सिज़ख गन तरो।
वाहिन होइ तार ढिग आए।
दासनि गन को बहु हरखाए ॥३॥
दै धीरज सभिहिनि इकसार।
सतिगुर होति भए असवार।
निकसे काणशी पुरि को छोरा।
गमने करि मुख पशचमि ओरा ॥४॥
आदर हेतु पुचावनि आए।
खरे करे कहि गुरु समुदाए।
सभि को हटकि अगारी चाले।
संदन मातनि आवति नाले ॥५॥
अपर बिहीर सकल चलि आवा।
नवोण समाज समूह बनावा।
इसी रीति मारग महि चले।
करति अनेक बिलासनि भले ॥६॥
डेरा टिकहि भानु के ढरे।
गुर आगवन जि सुनिबो करेण।
जनु सिज़खनिको नवनिधि पावै।
आनद धारि धाइ ढिग आवैण ॥७॥
औचक गुर दरशन हम पावति।
जिन हित कोस हग़ार सिधावति।