Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) ३४५
५०. ।सीतला निकली॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>५१
दोहरा: तिस दिन ते श्री हरिक्रिशन, आइसु कीनसि दास।
सिख संगति ढिग दूर के, आइ नहीण को पास ॥१॥
चौपई: जो ग़रूर ही चहीअहि आइ।
सो बूझहि पुनरपि प्रविशाइ१।
बंदुबसत सभि ही करि दीनि।
निकटि नहीण को पहुचहि चीन ॥२॥
तन पर निकसे गन बिसफोट२।सघन अधिक को दीरघ, छोट३।
अरुन बरन सगरो हुइ आयो।
सोजा कुछुक देहि द्रिशटायो ॥३॥
दिन प्रति अधिक अधिक ही भयो।
भरिबो बिसफोटनि हुइ गयो।
जो सुधि लैबे आइ मसंद।
कै संगति नर किधौण बिलद ॥४॥
सभि के बर वहिर ही देति।
सतिगुर पौढे बीच निकेत।
शाहु हमेश पठहि अुमराव।
अरु आवति नित जै सिंघ राव ॥५॥
सभि ते अुदासीन ब्रिति करि कै।
पौढे रहैण तूशनी धरि कै।
जानो सभिनि प्रथम जिम भयो।
-रामराइ जैसे बच कियो ॥६॥
सो अबि साच होइ, नहि टरै।
नांहि त किम सतिगुर इम परैण।
जिन के दरशन ते मिटि जाइ।
आदि सीतला रुज समुदाइ ॥७॥
सिख आदिक पुरि महि नर घने।
१ओह पुज़छके फेर मंदर आवे।
२छाले।
३(कोई) छोटा।