Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३५०
सभिहिनि अस शोभा तबि लही।
अनणद अुदधि की अुठहिण तरंगैण।
इमि सभि जाति चले गुर संगै ॥४६॥
चलि आए इमि गोइंदवाल।
सभि ने अुतसव कीनि बिसाल।दीपमाल सगरे पुरि होई।
दरशन कहु आए सभि कोई ॥४७॥
मधुर प्रसादि भयो समुदाई।
बरतति संगति सगल अघाई।
फूलन माला आनति केई।
दरसैण कितिक आनि फल तेई१ ॥४८॥
सभि संगति की सुनि करि बिनती।
गादी पर बैठे तजि गिनती।
देनि लगे दरशन पुन तैसे।
सिज़ख सरब परवारति बैसे ॥४९॥
जेतिक संगति हुती बिदेशु।
दरशन करि वर पाइ विशेशु।
रहि केतिक दिन गई अवासू२।
दस दिश कीरति करति प्रकाशू ॥५०॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे श्री अमरदास पुरि
आगमन प्रसंग बरनन नाम खशट त्रिंसती अंसू ॥३६॥
१अुह (सिख) फल लिआके (भेट धरके) दरशन करदे हन।
२(आपणे) घरीण।