Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३५२
अंतरयामी गुर ने जाना।
परम हंस तिस नाम बखाना।
पूरन गान रिदे हुइ आवा।
एक रूप सभि जग द्रिशटावा ॥८॥
परमहंस सतिगुर के कहे।
ब्रहम सरूप अपन सुख लहे।
जोग, विराग, भगति बिज़गान१।
पूरन होए जिस के आनि ॥९॥
निधि सिज़धि रिधि गुर ते पाई।
आवति ही सतिगुर शरनाई।
कुल आचार करति बिवहार।
अुर महिण गुर चरनन को धारि+ ॥१०॥
जोग भोग दोनहुण को पाइ।
रहै अलेप कमल जल भाइ२।
दुइ दिन घर, पुन सतिगुर पास।
आवहि, रहै, दरस की पास ॥११॥
इक दिन चढो तुरंगनि आवै।
नहिण अवनी पर पाइण टिकावै।
गति बिहंग३ की बड़वा चालहि४।
करामात के सहति बिसालहि ॥१२॥
दिज़ली ते नबाब मग जाइ५।
गज पर हुतो चमूं समुदाइ।
अवलोको तिन भाई पारो।महां अचरज रिदै महिण धारो ॥१३॥
शीघ्र जाइ भा खरो अगाअू।
दरशन को धरि कै चित चाअू।
तजि गज को पाइन पर परो।
१अनुभव जंन पूरन गिआन।
+पा:-अुर महि गुरू चरन को धारि।
२वाणू।
३पंछी ।
४घोड़ी चज़लदी है।
५राह (विच) जाणदा सी।