Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ३५०
४५. ।माछीवाड़े। माही॥
४४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>४६
दोहरा: सुज़खा मिरचां तार करि,
लाइ गुलाबा पास।
पूरि कटोरा अज़ग्र धरि,
गुर अुठाइ त्रिख नाश१ ॥१॥
निशानी छंद: सरद नीर बर पान ते
सभि पास बिनाशी।
अरकदुघध को दुरअमल२,
बड अुशन प्रकाशी।
अुर अनद कहु मान करि
अुठि चहो पयाना।
चरन फालरे बहु परे
दैण खेद महाना ॥२॥मान सिंघ बलवंत तबि, बल साथ अुठाए।
गए सौच हित करन ते, तट सलिता थाए।
बडी झील बेला खरो, नहि दिखत नजीका।
काह, पटेरा३ आदि त्रिं, संघन तिह नीका ॥३॥
प्रविसे जाइ मझार तिह, करि सौच पयाने।
अुपबन को आवन लगे, त्रिं चीर महाने।
तहि महिखी चारति फिरति, इक मूरख माही४।
आवति गुरू बिलोकि तिस, बिसमो मन मांही ॥४॥
मन जानी -इह सिंघ हैण, तजि चले लराई।
मैण अबि करौण पुकार को, दै हौण पकराई-।
इम निशचै करि अूच धुनि, मुख बाक पुकारा।
सिंघ पलाए जाति हैण, इह झील मझारा ॥५॥
श्री गुर बोले धरम सिंघ, इह जान न पावै।
गहि आनहु मति मंद को, नहि रौर अुठावै।
१त्रेह दूर कीती।
२अमल अुतर गिआ।
३काही ते दज़भ या दिज़भ। पटेरा=इक प्रकार दा लमा घाह जो पांी दे कंढे ते थोड़े पांी विच
हुंदा है, जिस दीआण सफां बुंदे हन। ।संस:, पटेरन। हिंदी पटेर॥।
४मज़झी चारन वाला, छेड़।