Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) ३५४

४४. ।जंग शुरू॥
४३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>४५
दोहरा: जाम दिवस के चढे ते,
लवपुरि ते प्रसथान।
तीन जाम मारग चले,
पुन निस कीनि पयान ॥१॥
चौपई: कुछ बिज़स्राम कीनि श्रम होए१।
दो इक जाम नीठि ही सोए२*।
बहुर चढे दिन सगरे चाले।
चार जाम महि पंथ बिसाले ॥२॥
बहुर निसा दूसरि हुइ आई।
किस किस खानो कीनि बनाई।
दाना दीनसि किनहु निहारी।
तअू श्रमति बड ते मग भारी ॥३॥
रूपा ग्राम अुलघि करि आए।
बहु ग्रामन के आगू लाए।
कहैण कि जिस थल गुर को डेरा।
हमहि दिखाइ देहु इक बेरा ॥४॥
ग्रामनि के नर को बहु तारैण३।
डरि करि आगू अज़ग्रपधारै।
त्रौदस जाम सु चलति बिताए।
चौदसमेण महि गुर नियराए ॥५॥
महां श्रमति अरु छुधति बिसाले।
ठरे चरन कर लागति पाले४।
तीनहु कारन ते तुरकाना।
बाकुल बहु, किम हुइ सवधाना ॥६॥
ललाबेग युत सभि सरदारा।
नहि लशकर को हाल बिचारा।


१थज़किआण होइआण ने कुछक अराम कीता।
२दो इक पहिर मसां ही सुज़ते सन।
*पा:-दो इक जामनी रही सोइ। पुना:-जामनी ठाई मोइ। पुना:-कीन निस सोए।
३ताड़दे हन।
४हज़थ पैर पाला लग के ठर गए।

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