Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ३५७
४७. ।खानग़ादे दी भाजड़ ते बरवा लुटंा॥
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>४८
दोहरा: पुज़त्र दिलावर को तबै, बनि कातुर भै भीत।
गुर प्रताप दीरघ लखो, तजी आस नहि जीत१ ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद: परो भूर पारो२ सु पिंगं३ समान।
सुनोण शोर दूजे चमूं के महान।
बिना जंग ते त्रास को भूर धारे।
मिले सूम सोफी४ सिपाही डरारे॥२॥
बिना शसत्र झारे भए एंु५ जैसे।
महां मूड़्ह गीदी चले भाजि तैसे।
गुरू जंग बीचं जबै आप आवै।
कहो कौन जोधा६ सु बीरं थिरावै ॥३॥
पराजै करै७ छोरि तीखे सु तीरं।
इमं बोलते जाति भाजे सु बीरं।
यथा शेर सूतो अुठहि जाग सोई।
करी८ ब्रिंद भागैण बिना लाज होई ॥४॥
दोहरा: चलति९ पंथ मैण आइगो, बरवा ग्राम सु नाम।
करि मसलत लूटो तबै, बसहि जितिक तहि धाम ॥५॥
भुजंग प्रयात छंद: नहीण लोक जानै भजे भीरु है कै।
१(लड़ाई छज़ड) दिज़ती (कि) जिज़त दी आस नहीण है। (अ) जिज़त ना हुंदी (देख के) लड़ाई दी आस
छज़ड दिज़ती।
२पाला।
३पिंगले।
४अ:, शूम = भैड़े शगनां वाला। सूफी = पशम पहिनं वाला। सूफी नाम फकीर दा बी है।
पंजाबी दे मुहावरे विच सूम = बखील, कंजूस ळ कहिदे हन ते सोी = नशा ना पीं वाले ळ।
शूम सोफी इकज़ठे पद दा भाव है बदशगना ते कंजूस किअुणकि दारू पीं वाले सूफी ळ आपणे विच
कंटक ते बदशगना समझदे हन ते शूम ने वी पींी नहीण किअुणकि फेर पिआअुणी पैणदी है ते
पिआअुणंीनहीण किअुणकि पैसे खरचंे पैणदे हन। कवी जी दा कटाख इह है:-शूम = ओह आदमी
जो बीरता दे कंमां विच बदशगना है ते सोफी जो बीरता रूपी नशे तोण सज़खंा है। (अ) दूजे वासते
तां खरचे कुछ नां ते आप बन ठन के रहे इहो जिहे आदमी लई बी मुहावरा है कि इह तां
शूमसोफी है।
५हिरन। भाव कमग़ोर दिल।
६जुज़ध करन वाला।
७हरा देणदा है, जित लैणदा है।
८हाथी।
९(पठां ळ) जाणदिआण।