Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३६३

बाल गुलेला मारि गवावैण१।
या बिधि बहुत करी जबि तिनै।
गुर पै सिज़खन कीनी बिनै ॥२६॥
शेखन सुत घट तोरैण तूरनि।
जल कौ जबि करि लावैण पूरन।
तबि करुना कर बोले बानी।
मशकैण बीच लिआवो पानी ॥२७॥
मानि बचन तोण ही तिन कीनी।
जल भरिबो को मशकैण लीनी।
तबि बारक कर धारि कमानै।
तीर मार फारैण अभिमानै ॥२८॥
पुन सिज़खन गुर केरि हदूरा।
सकल ब्रितांत बखानो तूरा।
मशकैण फारति कस कै तीरनि।
बस नहिण चलति करति अवगीरनि२ ॥२९॥
तबि मुख चंद बचन+ परकाशे।
गागर मैण जल लाअु हुलासे।
सज़ति भाखि३ कीनी तिन तैसे।
कही मुकंद अनदति जैसे ॥३०॥
वह बालक घट++ ईणटन भानै४।
ग़ुलमी करैण दुशटअभिमानै।
मात तात तिन के नहिण होरैण५।
होति प्रसंन निहारि बहोरैण ॥३१॥
पुनि अरदास करी सभि संगति।
गगरन* तोरै बालक पंगति।


१भाव फोड़ देवन।
२नाश करदे हन।
+पा:-बदन।
३सत वचन कहिके।
++पा:-सो।
४इज़टां नाल तोड़ देण।
५नहीण रोकदे।
*पा:-गागरन।

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