Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३६१

५१. ।खाधा होइआ दज़सिआ। खट रुतां दे मेवे इकज़ठे। अज़ग दे बाग॥
५०ॴॴपिछलाअंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५२
दोहरा: पुन इक दिन आए सभा, नदन श्री हरिराइ।
सनमानति नौरंग ते, बैठे मोद अुपाइ ॥१॥
चौपई: कहति शाहि हम खायो आज।
दिहु बताइ सो सभा समाज।
कितिक भांति को आमिख खायो।
अपर वसतु का मुख महि पायो ॥२॥
तुम कहु बडी बात नहि कोई।
देहु बताइ त्रिकाल जु होई१।
तअू आज को अचो जु खाना।
आप सुनावहु सभि के काना ॥३॥
सुनि श्री रामराइ बच शाहू।
करे बतावनि जो किछ खाहु।
पंच तरहि को आमिख खायो।
तीन रीति ओदन२ मिलवायो ॥४॥
चार बिधिनि के फल शुभ खाए।
इज़तादिक सभि अपर बताए।
जिती बेर मुख पीयहु पानी।
भोजन करति कही जिम बानी ॥५॥
जे समीप पाचक३ सु बताए।
दास निकटि के सो गिनवाए।
बासन धरे अगारी जेते।
भिंन भिंन भाखे तबि तेते ॥६॥
अचो जु थोड़ा, सो कहि दीनि।
अपर सुनाए ग्रास जि कीनि।
इस प्रकार जबि दियो बताई।
सुनि सुनि शाहु सभा बिसमाई ॥७॥
-मनहु निकटि बैठे इन गने।१तिंनां कालां विच जो कुछ हुंदा है।
२चावल।
३रसोईए।

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