Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ३६१

३९. ।ब्राहमण खीर मास भुगाए। ब्रहमण दे लखं॥
३८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>४०
दोहरा: प्रथम समैण श्री गुरू जी,
धरम सु प्रीछा हेत१।
करो जज़ग निवता दयो,
भोजन करो संकेत ॥१॥
भाखो हुते सुनाइ कै, मास खाइ दिज सोइ।
शरफी इक दछना तिसै, लै गमनै घरि सोइ ॥२॥
खीर खंड को भोगता, एक रुज़पया पाइ।
खाइ चुके बहु लोभ करि, मास अहारी आइ ॥३॥
खीर अहारी मुहर दैण, मास रुपज़या दीन।
बाक कहो श्री गुर तबै, धन लोभी ध्रम हीन ॥४॥
इह साधू जिन लोभ नहि, धरम कमाइओ सज़ति।
मास खाइ बिज़पर कहां, सो चंडाल का मिज़त ॥५॥
पीछै सतिगुर इम कहो, सुनोसिज़ख! चित लाइ।
सिज़ख होइ आमिख भखै, बिज़प्र नहीण सो खाइ ॥६॥
बचन सुनो सभि* संगती, करी बेनती एह।
जो दिज हुइ सिख पाहुली२, ता की करनी केह? ॥७॥
बाक भयो तबि गुरू का, आलम सिंघ सपूत३!
छज़त्री धरम सु पाइ के, दिज ते भा पुरहूत४ ॥८॥
तां की दिजता छज़त्र की, करै खड़ग की सेव५।
निवता दान न पूज ले, जो देयस दुख तेव६ ॥९॥
जाणही ते हम अुतरिओ, जगुपवीत की आन७।


इह सौ साखी दी ६४वीण साखी है।
पा:-सतिगुरू।
१(ब्राहमणां दे) धरम दी प्रीखा वासते।
*पा:-श्रति।
२अंम्रतधारी।
३हे आलम सिंघ पुज़त!
४(जिस ब्राहमन ने) छज़त्री धरम (खालसा धरम) धारन कर लिआ है अुह ब्राहमन तोण (मानोण) इंद्र
बण गिआ है।
५(खालसा धरम) पाके अुस दा ब्रहमन पुना इह है कि छज़त्री धरम धारके तलवार दी सेवा करे।
६जो देवेगा अुस ळ दुज़ख होवेगा।
७इसे करके असां जो जूं दी आन सी अुतार दिज़ता है।

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