Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ३६२४५. ।भाई सुभागा पंज घोड़े भेट लिआइआ॥
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दोहरा: सुनहु सिंघ सिख गन सकल१! सतिगुरु कथा रसाल।
भयो युज़ध इस भांति इह, बरनो सुजस क्रिपाल ॥१॥
चौपई: बैठो श्री हरि गोविंद जोधा।
मनहु रूप इह धरो प्रबोधा२।
हुकम मसंदनि संग बखाना।
करो कोट चौगिरद महाना ॥२॥
बसहि नगर सुंदर जिस बीचि।
परहि महल गन अूच रु नीचि।
राखहु पंच पौर पुरि केरे।
कारीगरनि लगाइ घनेरे ॥३॥
करहु शीघ्रता लेहु बनाइ।
दिहु धन मिहनति ब्रिंद लगाइ।
सुनति मसंदनि कीनसि तैसे।
श्री मुख ते फरमायहु जैसे ॥४॥
दियो दरब सभि को मन भाए।
ब्रिंद पचावे३ कहि चढिवाए।
पाकी ईणटनि तारी करैण।
आइ मिहनती जिह सुनि धरैण ॥५॥
कारीगर समूह मंगवाए।
दे दे दरब सु सरब लगाए।
चिनिबे लगे शीघ्रता धारी।
पाकी ईणट करी बहु तारी ॥६॥
हरखति होइ कारको करि हीण।
धन गन लीन भाअु पुन धरिहीण।
अंदर मंदिर लगे अुसारनि।
नी गरीब४ बासिबे कारन ॥७॥
बहु रअुणक तबि होवति भई।
१संमूह सिंघो ते सारे सिज़खो सुणो!
२मानो गिआन ने इह रूप धरिआ है।
३आवे।
४अमीर रीब दे।