Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३६५
खज़चर देखन लगे अपारा ॥३८॥
टोलि टोलि बहु रहे, न पाई।
हुइ निरास जबि चले मुराई++।
ग्रहि अंतर खज़चर तबि बोली।
बरे सिपाही लीनसि खोली ॥३९॥
जपत१ करो घर बाहर तिन को।
गुर सोण बैर हुतो थो जिन को।
केतिक फांसी दीन अुठाई।
केतिक की तबि पति अुतराई ॥४०॥
गुर पै सिज़खन कही सपूरन।
सुनिगुर कहति भए तबि तूरन।
एक संत पै सिज़ख सु बोलो।
सो सुनिहो धरि धान अमोलो ॥४१॥
-जे काहू को बुरा करावै।
तो का करै? कहो सुखदावै!
भला करै जो बुरा करावै।
बदला लेवन*+ ते हटि जावै ॥४२॥
फेर करै तौ? करि है करिहै।
तौ भलिआई वहु दुख भरिहै।
करिने जोगा रहै न सोअू।
आपे ही मरि जै है सोअू२- ॥४३॥
जैसी करै सु तैसी पावै।
++पा:-महाई।
१ग़बत।
*+पा:-देवन। तिंन लिखती नुसखिआण विच बदला लेवन वाली तुक है नहीण सो, दोनोण वेर इहो
तुक है-भला करै जो बुरा करावै।
२इक सिज़ख (स्री) संत (जी) पास बोलिआ, सो अमोलक (सिज़खा) धान धरके सुणोण। (प्रशन सिज़ख
दा:-) जे कोई किसे दा बुरा करे, तां (अुह) कीह करे? कहो हे सुखदाई (संत) जी! (अुतर:-)
भला करदिआण जो बुरा करे, (तां बुरे तोण) बदला लैंोण हट जावे। (प्रशन:-) (जे) फेर (बी बुरा)
करे तां, (अुतर:-) (अुह भलिआई) कर (भलिआई) करे, तां (भले दी)भलिआई (करन
करके) अुह (बुरा आपे) दुख भरेगा, (इथोण ताईण कि) अुह करन जोगा ही ना रहेगा, आपे ही
मर जाएगा। इस तोण अगे हुण गुरू जी बचन बोलदे हन। इह सारी गज़ल बात दज़सदी है कि गुरू
साहिब श्री गुरू अंगद देव जी दे अुपदेश वज़ल इशारा कर रहे हन, हो सकदा है कि अुस सिज़खा
वल इशारा कर रहे होण जो तपे दी होणी पर गुरू अंगद देव जी ने दिज़ती सी।