Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ३६८
४८. ।सतिगुरू जी श्री नगर पुज़जे॥
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दोहरा: श्री गुरु हरि गोविंद जी, जानी सभि मन मांहि।
-मम प्रतीखना करति है, निस बासुर सुख नांहि ॥१॥
चौपई: देश पहारनि को मग अहै।
मम सिखनी निज जाचति रहै।
बसहि गिरनि महि सिज़ख घनेरे।
नित चाहति जो मो कहु हेरे ॥२॥
तिन सभिहिनि की पुरवौण आसा।
जो हमेश रहि मम भरवासा।
बिरधा भागभरी पट राखा।
मो कहु पहिरावनि अभिलाखा ॥३॥
खान पान सूखम जिन कीनो।
निस बासुर सिमरनि मन लीनो।
अंत समां भी आनि पहूचो।
मम देखनि को नित चित रूचो१- ॥४॥
श्री गुर हरिगोबिंद कुल चंद।
रिदे बिचारो चलनि अमंद२।
बूझि मात को करि कै नमो।
मिलि कै सकल संग तिहो समो ॥५॥
निज सुभटनि कुछ लै करि साथ।
सभिको धीरज दे करि नाथ।
यथा योग सभि को सनमाना।
दास लिए संगि कीनि पयाना ॥६॥
करनि निहाल देश कशमीर।
गमने दिन प्रति गुरु गंभीर।
चलति चलति चपराहड़ पुरि* जहि।
१लगिआ है।
२त्रिखा, छेती चज़लंा (अ) सुहणा चलंा।
*इह पिंड सिआलकोट तोण सत अज़ठ मील पूरबोत्र दिशा वल है। इस तोण दो कु मील ते पिंड
रहिसमां है, जिस तोण ढाई कु सौ करम दी विज़थ ते साहिबाण दी यादगार विच दो गुरदारे टाहली
साहिब ते गुरू सर हन, सरोवर जिथोण बरछा मारके जल कढिआ सी हुण है, छेवेण सतिगुर जी
दे अवतार धारन दे दिन मेला लगदा रिहा है।