Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ३६९
४९. ।कैद विचोण सिज़खां दे घर प्रशाद छकंा॥
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>५०
दोहरा: काराग्रिह महि सतिगुरू*,
पठि दीने तुरकेश।
रिदे बिचार अुचारतो+,
बैठी सभा अशेश ॥१॥
चौपई: १इह हिंदुनि को गुरू कहावै।
अग़मतइस महि द्रिशटि सु आवै।
अगनि ब्रिंद महि मिरचै तीन।
जलनि न दई दिखावनि कीनि ॥२॥
अपर पंच मन सगरी जरी।
बिना तीन ते इक न अुबरी२।
करामात इह नहीण दिखावै।
पठि कलमा न शरा महि आवै ॥३॥
अपने हठ को दिढ करि पालै।
कहे हमारे पर नहि चालै।
भयो कैद दुख लहै घनेरा।
तअू न मानति है इक बेरा ॥४॥
सुनि करि शरा फसा के बंधे३।
नौरंग संग भनहि मति अंधे।
राखहु कैद ताड़ना लहे।
सरब प्रकार कठन हुइ रहे ॥५॥
मिलिबे देहु न किस के संग।
पावति कशट बंध लिहु अंग।
बहु दिन महि अकुलाइ बिसाले।
कहे तुमारे महि तबि चालै ॥६॥
इम श्री तेग बहादर गए।
काराग्रिह महि बैठति भए।
*पा:-गुरू कहि।
+पा:-सु करति है।
१सारी सभा विच बैठा (नुरंगा कहिदा है)।
२इक वी नहीण बची।
३शर्हा दी फाही विच बज़धे होए।