Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ३७१

चौपई: इम कहि अगले ग्राम सिधारे।
हेरिकूप ते नीर निकारे।
धरो कटोरा पी त्रिपताए।
नगर आगरे समुख सिधाए ॥४१॥
पंथ अुलघि गए बहुतेरा।
जोजन चलन रहो लखि नेरा।
डेरा करो थान सुठ हेरा।
त्रिं दाना अनवाइ घनेरा ॥४२॥
सुपति जथासुख राति बिताई।
नगर आगरे सुधि चलि आई।
जगत गुरू भगवान छबीला।
दासन को सुखदान हठीला ॥४३॥
क्रिपा करति सो अबि चलि आए।
चतुर कोस पर सिवर लगाए।
महिमा जानति जौन बिसाला।
सुनि अनद होए ततकाला ॥४४॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने आगरे आगमन प्रसंग
बरनन नाम पंच चज़तारिसंती अंसू ॥४५॥

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