Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ३७७
४७. ।नवेण नगर दा नाम श्री हरि गुविंद पुर धरिआ॥
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>४८
दोहरा: हय अकोर गन देय करि, संगति गई बिसाल।
जाइ शनाने सुधासर, देखति भए निहाल ॥१॥
चौपई: तीरथ तरन तरन पुन गए।
तहां शनान करति सभि भए।
तहि संगति ने रिदे बिचारा।
ब्रिध साहिब गुरु सिज़ख अुदारा ॥२॥
जिस को बचन पाइ गुरु जनमे।
श्री हरिगोविंद बिदति सभिनि मेण।
इहां निकटि तिस दरशन करो।
जानहु तिसै गुरू समसरो१ ॥३॥
इम मसलत करि संगति गई।
बीड़ गुरू के जहि सुधि लई।
आगै ब्रिध भाई गुरुदासि।
दोनहु बैठे गान प्रकाश२॥४॥
सभिनि अुपाइन धरि धरि बंदे।
दरशन ले करि रिदे अनदे।
दई प्रदछना सनमुख बैसे।
तबि भाई बूझै सभि ऐसे ॥५॥
कहि ते आए? कहां पयाने?
सुनि संगति शुभ वाक बखाने।
तीर बिपासा ग्राम रुहेला।
श्री हरि गोबिंद गुरू सुहेला ॥६॥
तिह ठां मचो अधिक संग्रामू।
तुरक हग़ारोण गे जम धामू।
तिन दरशन करि इति दिशि आए।
रावर के दरशन अबि पाए ॥७॥
सरब प्रसंग सुनो हरखाए।
संगति को बर दे त्रिपताए।
१बराबर।
२गिआन कथन करदे सन।