Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३७७

५५. ।माता नानकी जी दी बेनती॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>५६
दोहरा: इम मरवाही धीर कछ, रही पाइ घर मांहि।
तअू अधिक चिंता रिदै, जरी जाति सो१ नांहि ॥१॥
चौपई: भूर बिसूरति -बिज़प्रै होवा२-।
छूछा आपनि पुज़तर को जोवा।
गुरता लही शरीक, बिचारै।
-हम निरबल हुइ, सो बल धारै ॥२॥
कंत शरीर कितिक दिन केरा।
वधहि अुताइल पीछै झेरा-।
निस दिन गनिहि गटी इज़तादि।
सोचति सोचनि हुइ बिसमादि ॥३॥
-कहां हुती, अबि का हुइ जै है।
कंत प्रभू बिन किम सुखऐ है-।
इज़तादिक ब्रितंत मरवाही।
सुनहु नानकी जिम चित चाही ॥४॥
अति चिंतातर भई बिचारी।
-औचक कहां कंत क्रित कारी३।
पुज़त्र४ गरीब न जानै काअू।
सदा मसत जिम सरल सुभाअू ॥५॥
जग के चतुराई बिवहारे।
कबि न आज लगि अंगीकारे।
किस मसंद सोण मेल न ठाना।
आवति दरब जिनहु के पानां ॥६॥
सिख संगति को जानहि भेव५।
मसतक टेकहि सम गुर देव।
नांहि त एकाकी बहु बैसे।
नहि जानहि घर की क्रित कैसे- ॥७॥


१अुह चिंता।
२अुलटी (गल) होई है।
३कीती है।
४(मेरा) पुज़त्र।
५संगत विचोण कोई (विरला) सिख भेद जाणदा है (मेरे पुज़त्र दा)।

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