Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३७८

५२. ।अकाल पुरख पासोण विदैगी॥
५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>५३
दोहरा: करो गमन को मुनि जबहि, बेग बिसाल बिमान।
तूरन ही अूरध अुठो, चलो जाति जिम भानु ॥१॥
सैया छंद: बेग बिमान समान जु मन के१
निमख बिखै पहुचो दरबार।छरीदार दरशन प्रिय ठांढे,
सिंघ पौर जनु रजत पहार२।
सूरज समसर महिद प्रकाशक,
कवि समरथ को करहि अुचार।
तहि ते अुतरि खरे तबि दरसे
मुख मंडल जनु चंद अुदार३ ॥२॥
४सुंदर दरशन मंदर दर पर,
मंदहास, म्रिदुशर मुदपाइ।
सादर अज़ग्र लैन को आए३
मिले संग लै चले लवाइ५।
गए, प्रभू के दरशन करि कै
करी दंड वत प्रेम बधाइ।
पुट लोचन ते रूप अमी निधि
पान करति बहु, नहि त्रिपताइ६ ॥३॥
हाथ बंदि पुन बंदन धारी
ठांढे भए निम्रता साथ।
कहे नाम जो बीच जापजी
बरनन करे सतुति की गाथ।
कहि करि मुखि ते नमहि नमहि प्रभु!


१मन दे समान जिस बिमान दे वेग है।
२पिआरे दरशनां वाले छरीदार सिंघ पौर ते खड़े हन (जो सिंघ पौर) मानोण चांदी दे पहाड़ वाण
है।
३(तपी जी दा) मुख मंडल पूरन चंद वाण दिज़सिआ। (अ) कई सिआणे अगोण लैं आइआण वल
लाअुणदे हन।
४मंदर दे बूहे अज़गेसुहणे दरशनां वाले मुसक्रा रहे, मिठी सुर खुशी नाल (जी आइआण कहि रहे)
आदर नाल लैं आए अज़गोण।
५नाल लैके।
६नेतराण रूप डोनिआण नाल सरूप रूपी अंम्रित दी निधी पीणदे रजदे नहीण।

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