Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ३७८
जहि अुपबनतरुवर समुदाए ॥४३॥
अुतरि परे प्रभु बाग निहारसि।
जो माली बहु रीति सुधारसि।
आरू, अंबू, अनार अजाइब।
कदली, कठल, बिलोकति साहिब ॥४४॥
तूत बिदाना, तरु अंजीर।
चंपक, नालकेल की भीर।
राइबेल, चंबेली खिली।
गनपंकति नित जल सोण मिली ॥४५॥
सूरज सुता तीर पर सोहैण।
नाना बिधि फल फूलनि सोण है।
सुखद सघन छाइआ रमनीका।
करहि भले हुलसावनि जी का ॥४६॥
श्री प्रभु मंदिर महि कै छाया१।
बैठि बिराजहि समोण बिताया।
नगर आगरे संगति भारी।
दरसहि धरहि अकोर अगारी ॥४७॥
एक सिज़ख जड़ीआ सुनिआरा।
चतर काज महि धनी अुदारा।
जुति परिवार दरस को आयो।
चरन कमल पर सीस निवायो ॥४८॥
लगे अुपायन के अंबार।
अरपति गुर को दरस निहारि।
क्रिपा द्रिशटि ते खुशी करी जबि।
संगत गवनी निज निज घर तबि ॥४९॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने बहादर शाह मिलन प्रसंग
बरनन नाम खशट चतवारिंसती अंसू ॥४६॥
विशेश टूक:-कलगीधर जी दा आदर सतिकार ते सनमान बहादर शाह ने अुस
विशै दी शुकर गुग़ारी वजोण कीता है जो सिंघां दी सहाइता नाल
आपणे भरा पुर अुस ळ प्रापत होई सी।
गुरू जी गुरसिज़खी दा प्रचार राजपूताने विच करदे दज़खं ळ जा रहे सन, बहादर
शाह लशकर कशी करके आ रिहा सी। गुरू जी दी अलूहीअत दी
१मंदर विच या छाइआ (हेठ)।