Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५२
अुचता सिज़खी पर चढि जाइ।
होहि मनोरथ पूरन मेरा।
गुर पद सेवअुण सांझ सवेरा ॥३१॥
यां ते अहै भरोसा मोही।
ग्रिंथ संपूरन सगरो होही।
तुरकन राज तेज बन दावा।
एक बार करि छार मिटावा ॥३२॥
श्री नानक नर तारन हेतु।
सिज़खी बेल बोइ जग खेत।
अपर गुरू अुपदेश जु बारी।
दे दे भली भांति प्रतिपारी ॥३३॥
सिमरन सज़तिनाम सु सुमनसा+।
ब्रह गान फल चहि जिसु मनसा++।
कलीधर रण करि बहु बारि।
अनिक जतन ते सो प्रतिपारि ॥३४॥
रुचिर = सुंदर
मणि = रतन, कोई बहु मुज़ला रतन, हीरा पंना लाल आदिक।
मांिक = लाल रंग दा रतन, जिसळ लाल बी कहिणदे हन।
गिरवर = स्रेशट पहाड़। पहाड़। थानिक =थाअुण।
पिंग = पिंगला। अुतेरे = अुपर, अुचेरे। गुन = धागा, डोर।
बंधावन = बंन्हके। सुहावन = सुहावंा, सुहणा लगण वाला।
करुंा = क्रिपा। मेहर।
दावा = दावानल, ओह अज़ग जो बनां ळ साड़दी है।
बारी = बार, जल, पांी। पारी = पाली।
सु सुमनसा = सु = स्रेशट। सुमनसा = फुज़ल। ।संस: सुमनस: = फुल।
सुमनसा = वडे फुलां वाली चंबेली, मोतीआ॥। (अ) ।संस: समुन: =
प्रापती।॥ भाव ब्रहम गान दी प्रापती रूपी फल जिसि नाल चाह सा (= शांत) हो
जाणदी है। (ॲ) चहि+जि+समन सा = सा चहि जि शमन = जिसदे नाल शमन हो
जाणदी है ओह चाहना।
चहि जिस मनसा = जिसळ मन चाहे, मनो वाणछत।
रणकरना = जुध करना।
+पा:-सुभ सुमनस।
++पा:-जि सुमनस।