Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १)३८५
को गुरमुख ते१ सुनि अुपदेश।
मेटहि बंधन कशट अशेश।
बावन चंदन की सम होइ।
नर तरु सुजस सुगंधति सोइ२ ॥५५॥
निकट बसे पूरब बडिभागी।
सज़तिनाम सोण अुर लिवलागी।
धंन धंन गुर अमर अुचारैण।
अंतर ब्रिती बैठि नित धारैण ॥५६॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे सिज़खन प्रसंग बरनन नामु
चज़तारिंसती अंसू ॥४०॥
१गुरमुखां (भाव मंजीआण दी बखशिश वाले हरीजनां) तोण। त्रै तर्हां नाल अुपदेश मिलदा सी, इक
गुरू जी तोण, दूजे सिखां तोण (देखो अंक ५३) तीजे गुरमुखां तोण। (अ) गुरू जी दे मुख तोण।
२(वाहिगुरू जी दा सुजस) कीरतन रूपी (सुगंधी) नाल सुगंधित होए ओह नर रूप ब्रिज़छ बावन
चंदन वाणगू (दूसरिआण ळ सुगंधित करदे सन)।